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फिल्म का नाम काशी-इन सर्च ऑफ गंगा न होकर इन सर्च ऑफ अभिनय, कहानी, एक्सप्रेशंस और दर्शक होना था स्टार : 1/5

फिल्म  : काशी-इन सर्च ऑफ गंगा
कास्ट : शरमन जोशी, ऐश्वर्या देवन, मनोज पाहवा, अखिलेन्द्र मिश्रा, मनोज जोशी
निर्देशक : धीरज कुमार 
म्यूजिक : अंकित तिवारी, विपिन पटवा, राज आशू और  डीजे एमेनेस 
स्टार : 1/5
समीक्षक : पुष्कर ओझा 
 
  फिल्म 'काशी-इन सर्च ऑफ गंगा' में भाई बहन के प्यार को दर्शाने की कोशिश की हैं, पर परदे प् नजर नहीं आता 
 
 कहानी की बात करते है  कहानी है काशी (शरमन जोशी) के बारे में जो बनारस में रहता है और वहां के घाट पर शवों को जला का कार्य करता है. एक दिन होली के  दरमियान उसकी मुलाकात होती है पत्रकार देविना (ऐश्वर्या देवन) से होती है जो बनारस के  बारे में लिखने के उद्देश्य से बनारस आई है. जिसे काशी ही वह वक़्ती लगता हैं जो देविना के लेख में मद्दत कर सके | दोनों की दोस्ती होती हैं | काशी का छोटा परिवार हैं  घर में उसके माता-पिता के अलावा छोटी बहन गंगा है जिस पर काशी अपनी जान न्यौछावर करता है. पर एक दिन  गंगा कॉलेज से  घर वापस नहीं आती है इस बात की खबर जब काशी को होती   उसकी खोज में लग जाता है. काशी की इस खोज में उसका साथ देती है देविना |  खोज करते करते काशी के सामने प्रेम प्रकरण  आता हैं काशी की बहन शहर के नेता के बेटे अभिमन्यु से प्रेम करती थी  यहाँ उसके बच्चे की मां बनने वाली थी. इसी बिच गंगा की लाश मिलती हैं , जिसे देख काशी आग बबूला हो जाता हैं और अभिमन्यु को होटल के छत से निचे फेक उसकी हत्या कर देता हैं | अब शुरू होआ कोर्ट रूम ड्रामा यही से पता चलता हैं की काशी की कोई बहन गंगा हैं ही नहीं | वाकय इसके लिए आपको फिल्म देखनी होंगी | गंगा थी या यह सिर्फ काशी की मनघडत कहानी थी, देविना का इन सबसे कोई लेना देना था, या प्यार के खातिर वह काशी की मद्दत करती हैं | 
   बात करते है अभिनय की काशी के रोल में शरमन सटीक नहीं बैठे वह अपने किरदार में घुस ही नहीं पाए ऐसा लग रहा  था जैसे बस काम ख़त्म कर जल्दी से घर जाना हैं, शरमन तो शरमन साउथ से बॉलीवुड की और रूख करने वाली ऐश्वर्या देवन ने भी काफी कमजोर अभिनय नज़र आया, न ठीक से डायलोग बोल  पाई  न चेहरे पर एक्सप्रेशंस दे पाई. इन दोनों से अच्छा तो शरमन के दोस्तों ने अभिनय किया | इनके साथ  मनोज पाहवा, मनोज जोशी और अखिलेन्द्र मिश्रा कोर्ट में नज़र आते हैं  | जिनके अभिनय के बारे में क्या कहे       
    निर्देशन की बात करते हैं निर्देशक धीरज कुमार को सिखने की आवश्यकता थी भले शुरुवात अच्छी की पर धीरे धीरे फिल्म बोर करने लगती है . कहानी अच्छी हैं पर पिरोया ठीक से नहीं धीरज के पास रियल मोती थे पर उन्होंने कच्चे धागे में पिरोया जिसका खामयाजा धीरज को भुगतना पड़ेगा, बनारस की गालिया ठीक से परदे पर उत्तार पाए न अभिनय करवा पाए | धीरज कुमार एक कमजोर  नज़र आये उन्हें किस बात का भय था यह सिर्फ वही जाने | कुछ कुछ सीन क्यू परदे पर नज़र आते हैं यह वही जाने | 
   
  बात करते हैं संगीत की तो म्यूजिक भी इतना खास नहीं हैं फिर होली सांग हो या सेड सॉन्ग कोई भी गाना ज़ुबा पर नहीं चढ़ता | बैकग्राउंड म्यूजिक ठीक ठाक हैं | 
 
मेरी माने तो  काशी-इन सर्च ऑफ गंगा न देखे समय और पैसे की बचत होंगी